प्राचार्य संदेश



मेरी दृष्टि में •••••


शिक्षा महज विद्यार्थियों का मार्गदर्शन ही नहीं करती बल्कि उनके शारीरिक मानसिक और एक हद तक उनके संस्कारों को भी प्रभावित करती है विद्यार्थियों में प्रबल मेधा व प्रतिभा का प्रस्फुटन शिक्षा के माध्यम से ही संभव है । जरूरत यह है कि उनकी प्रतिभा को परखा जाए और उचित मूल्यांकन किया जाय । सम्प्रति हमारे देश की युवा पीढ़ी का एक वर्ग अपने ज्ञान व दक्षता से विश्व के उद्योग जगत का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल है । विश्व के विकसित देश छात्रों को करोड़ों का पैकेज देकर अपने यहाँ आमंत्रित कर रहे हैं , लेकिन विडम्बना यह है कि परम्परागत शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों का आज भी कोई मोल नहीं है । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अभी तक कोई ऐसा पाठ्यक्रम नहीं बना पाया है जिससे कि हमारी शिक्षा पद्धति भी इस लायक हो जाए कि छात्रों को रोजगार मिल सके । केवल ज्ञान प्राप्त करने के लिए पढ़ते जाना अब इस युगका लक्ष्य नहीं रहा । ज्ञान महनीय है , किन्तु आज उसका सामाजिक आर्थिक सन्दर्भ महत्वपूर्ण है । समस्त पहलुओं पर विचार करने के बाद वर्तमान शिक्षा व्यवस्था , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार और सरकारी नीति में असन्तुलन आदि ऐसे सामयिक सन्दर्श हैं जो युवा पीढ़ी के वर्तमान को झकझोरने के लिए पर्याप्त हैं । इनसे मुखातिब होते ही स्वाभाविक तौर पर युवक क्षुब्ध हो उठते हैं । शिक्षा के वर्तमान स्वरूप में कागजी डिग्री की फाइलें मोटी होती जा रही हैं जो प्रयोजनहीन है । वर्तमान समय में किसी भी युवक - युवती के समक्ष एक ओर तो प्रवेश परीक्षा की समस्या रहती है दूसरी ओर प्रवेश हो जाने के बाद पढ़ने - लिखने की । पढ़ा - लिखा युवा अच्छी और ऊंची डिग्री लेकर सिर्फ विज्ञापनों का कालम देखता है । उसकी सारी उम्मीदें वहाँ धूमिल हो जाती है जब उसे किसी अपेक्षित रोजगार का अवसर नहीं मिल पाता भी है सच तो यह है कि शिक्षा के सभी घटक आज बीमार हैं ।

शिक्षा सामाजिक और नैतिक सरोकारों से विमुख होकर व्यावसायिक बनती जा रही है । शिक्षा व्यवस्था के सभी घटक ( शिक्षा , शिक्षालय , प्रबन्ध - समिति , शिक्षक , शिक्षार्थी और अभिभावक ) सामंजस्य के अभाव में वास्तविक छवि नहीं बना पा रहे हैं । शिक्षा एक तरह अपनी अपूर्णता का परिचय दे रही है । शिक्षण संस्थाओं में जहांगीर कालीन , नूरजहाँ ' जुनट ' का प्रभाव शिक्षण कार्यों और प्रशासनिक कार्यों के अवनति का कारण बन रहे है ।

तत्कालीन समय में महाविद्यालय में 1100 से अधिक छात्र - छात्राएँ अध्ययनरत है इसके पीछे हमारे शिक्षकों और प्रबन्ध समिति का अतुलनीय सहयोग रहा है । सम्प्रति इस महाविद्यालय में स्नातक स्तर पर कला संकाय के नौ विषय , वाणिज्य - विभाग एवं स्नाकोत्तर स्तर पर हिन्दी , इतिहास , समाजशास्त्र व गृहविज्ञान जैसे विषय एवं बी.एड् . विभाग अपने अस्तित्व में है और निरन्तर अधुनातन क्षितिज पर आगे बढ़ रहे हैं । इसके अतिरिक्त महाविद्यालय में गैर शैक्षणिक कार्यों में राष्ट्रीय सेवायोजना की तीन इकाई संचलित हो रही है । वर्तमान सत्र 2020-21 से एन सी.सी. की एक ईकाई क्रियाशील है ।

महाविद्यालय प्रबन्धन के शिल्पी न्यायमूर्ति कलाधर शाही , अध्यक्ष श्री ज्ञानबहादुर सिंह , कुशल प्रबन्धक व सजग प्रसून प्रहरी श्रीयुत विजय कुमार सिंह प्रबन्ध - समिति के गणमान्य सदस्यों एवं महाविद्यालय परिवार के प्रति सम्पूर्ण निष्ठा के साथ प्रशंसा व्यक्त करता हूँ और ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूँ कि यह महाविद्यालय उत्तरोत्तर अपनी उचाइयों की ओर अग्रसर होता रहे ।

मैं अपने योग्य शिक्षकों तथा छात्र - छात्राओं के अथक प्रयास की सराहना करना चाहूँगा जिनके नाते यह ' अभिव्यक्ति ' अहर्निश ऊर्जावान हो रही है । सम्पादक व सम्पादक - मण्डल के सदस्यों को विशेष साधुवाद क्योंकि बिना उनके सहयोग के यह ' अभिव्यक्ति अपना मूर्त रूप नहीं ले पाती । " अभिव्यक्ति " उत्तरोत्तर उत्कर्षगामी हो ! यही मेरी मंगलकामना है ।

( डॉ . गिरिजेश सिंह )

प्राचार्य

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