प्राचार्य संदेश



अभिव्यक्ति...




“विश्वविद्यालयों का अस्तित्व मानवतावाद के लिए सहिष्णुता और विवेक लिए विचारगत साहस और सत्य की खोज के लिए होता है। उनका लक्ष्य है कि मानव समाज के निरन्तर उच्चतर उदेदश्यों की ओर कदम वढाये, राष्ट्र और जनता की भलाई इसी में है कि विश्वविद्यालय अपने दायित्वों का समुचित निर्वहन करते रहे” - यह कथन पं० जवाहरलाल नेहरू का है जिन्होने उच्च शिक्षा के उदेदश्यों और राष्ट्र जीवन में उनकी भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा था । महाविद्यालय विश्वविद्यालय के नियम परिनियम के अन्तर्गत ही संचालित होते हैं। यह एक संयोग ही है कि गोरखपुर के दक्षिणांचल बांसगांव में अवस्थित उच्च शिक्षा के केन्द्र इस महाविद्यालय का नाम भी जवाहरलालनेहरू पी0जी0 कालेज बाँसगाँव गोरखपुर है। जिसकी परिकल्पना स्मृतिशेष पूर्व प्रमुख चतुर्भुज सिंह ने की थी और इसकी स्थापना 14 दिसम्बर सन 2000 में हुई। इस महाविद्यालय की स्थापना एक महत्वपूर्ण घटना थी क्‍योंकि चतुर्दिक 7,8 किलोमीटर की दूरी तक उच्चशिक्षा में अध्ययन के लिए कोई संसाधन नही था। यह महविद्यालय आज इस क्षेत्र में शिक्षा का सशक्त माध्यम बनकर सर्वत्र अपना आलोक विखेर रहा है। अपने स्थापना काल से लेकर आज तक यह महाविद्यालय तमाम झंझावातों के वावजूद एक निश्चित कार्य योजना के तहत विकास के सोपान पर अनवरत अग्रसर है।

ज्ञान की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ नैतिक मूल्यों एवंम संस्कृति के विकास की अवधारणा उच्चशिक्षा में अपेक्षित है। वर्तमान को परम्परा से बोधित कराकर उसे भविष्योन्मुखी बनाना संस्कृति का मौलिक अभिलक्षण होता है। संस्कृति यदि अतीत की धरोहर है तो युगीन अभिव्यक्ति भी | बहुभविष्य का स्पन्दन है और पुनर्रचित होने वाली शश्वत अभिसृष्टि भी। शिक्षा महज विद्यार्थियों का मार्ग दर्शन ही नही करती वल्कि उनके शारीरिक, मानसिंक और एक हद तक उनके संस्कारों को भी प्रभावित करती है। विद्यार्थियों में प्रच्छन्‍न मेधा और प्रतिभा का प्रस्फुटन शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है।

मेरे प्रथम कार्यकाल में ही स्नातक स्तर पर कला संकाय के नौ विषय , वाणिज्य विभाग एवं स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी ,समाजशास्त्र, गृहविज्ञान एवं इतिहास जैसे विषय एवं बी0एड0 विभाग अपने अस्तित्व में है और निरन्तर अधुनातन क्षितिज पर आगे बढ रहे हैं। प्रबन्धक श्री विजय कुमार सिंह ने मुझपर प्रतीति करते हुए एक बार पुनः: यह अवसर मुझे प्रदान किया है। मेरा दायित्व बढ गया है और मेरी पूरी कोशिश यही है कि मै प्रबन्ध समिति और महाविद्यालय की उम्मीदों पर खरा उतरूँ | इस महाविद्यालय में एन. सी. सी.(राष्ट्रीय कैडेट कोर) और एन. एस. एस.(राष्ट्रीय सेवा योजना) जैसी इकाईयां भी हैं। आगे नये स्नातकोत्तर पाठयकमों के साथ - साथ स्नातक विज्ञान संकाय एवं बी0टेक पाठयकम की शुरूआत भी मेरी योजना में है। संस्थापक प्रबन्धक स्व0 चतुर्भुज सिंह का सपना 'के0जी0 से पी0जी0 तक का परिसर हो अपना' को भी मूर्त रूप देने की दिशा में प्रयासरत हूँ। मै आशान्वित हूँ कि प्रबन्ध समिति के सहयोग से मुझे अपने मंतव्य में सफलता मिलेगी ।

कुशल एवं योग्य अध्यापक किसी भी संस्था की रीढ होता है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नही है कि इस महाविद्यालय में जितने भी प्राध्यापक प्राध्यापिकाएँ हैं वे न केवल उच्च शिक्षित हैं बल्कि सभी अपने क्षेत्र में दक्ष हैं। सुदूर विश्वविद्यालयों में भी उन्होंने व्याख्यान देकर इस महाविद्यालय के गौरव में वृद्धि की है। अध्यापकों एवं कर्मचारियों के प्रति मेरा दृष्टिकोण उदारता व समभाव का हैं। हमने सबके लिए नियमानुसार मानक तय किये हैं और अच्छी बात यह है कि कोई भी अपनी सीमा का अतिकमण नही करता । महाविद्यालय की छात्र-छात्राओं के सर्वागीण विकास के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के वरिष्ठ एवं ख्यात विद्वानों को आमंत्रित कर व्याख्यानमाला का आयोजन करके विभिन्‍न विषयों के नूतन ज्ञान स्रोतों से परिचित कराने का कार्य मेरे दूसरे कार्यकाल का एक महत्वपूर्ण प्रयास रहा है । सम्प्रति यहाँ छात्र-छात्राओं की संख्या लगभग 1200 की है।

मुझे खुशी है कि वर्तमान प्रबन्धक श्री विजय कुमार सिंह महाविद्यालय के प्रगति और उन्नयन में सतत प्रयत्नशील है। यह महाविद्यालय अनवरत प्रगति करे यही मेरी अभीष्सा है।

( डॉ . भूपेश सिंह )

प्राचार्य

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